कुछ भीगी भीगी पलकें थी,
कुछ भीगे भीगे से हम थे,
कुछ जूस्तजू धड़कनो की दिल से थी,
कुछ हमारी भी साँसें थी कम,
कुछ अल्फ़ाज़ चुने थे इज़हार के,
कुछ लम्हे थे इंतेज़ार के,
कुछ खामोशी थी लफ़्ज़ों की होंठों से,
कुछ खामोश भी रहे हम,
कुछ रफ़्तारें तेज़ थी धड़कनो की,
कुछ धड़कनो की रवानगी भी कम थी,
कुछ होश भी कम था लहू-ए-जिगर में,
कुछ साँसों की शरीर से गिरफ़्त भी थी कम,
कुछ रास्ते चुने थे मोहब्बत के,
कुछ मुकाम चुने थे तन्हाई के,
कुछ पगडंडिया भी थी रेशम सी,
उन रास्तों पे चलने वेल भी थे बस हम,
कुछ आरज़ू भी ज़िद से मोहब्बत करने की,
कुछ जोश भी मोहब्बत को हासिल करने का,
एक वो थी नाज़-नीन जैसी मोहब्बत की बागडोर,
और एक कटी पतंग के जैसे थे हम,
कुछ अजब ही अदा थी उस हुस्न-ए-हयात की,
कुछ हम भी शौकीन थे उसके दीदार के,
कुछ वो भी परदनशीन थी मोहब्बत से,
कुछ गम-ए-शौकीन भी थे हम,
#इश्क़ #हसरतें